बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 15)

बिल्लेसुर जब दूसरे की एवज़ में काम करने लगे, तब कचहरी की लगातार हाज़िरी ज़रूरी हो गई। 


सत्तीदीन को गायों के काम के लिये दूसरा नौकर रखना पड़ा।

 बाहर का बहुत सा काम बिल्लेसुर कर देते थे, यों वे अब अलग रहते थे, अलग पकाते खाते थे।

फोकट में जगन्नाथ जी के दर्शन होंगे, बिल्लेसुर के आनन्द का आरपार न रहा। उन्होंने छुट्टी मंजूर करा ली।

 अगले इतवार के दिन सत्तीदीन के सामान के रक्षक के रूप से जगन्नाथ जी के दर्शनों के लिये सत्तीदीन और उनकी स्त्री के साथ रवाना हुए।

जिस तरह सत्तीदीन की स्त्री का विश्वास था कि जगन्नाथ जी की कृपा की दृष्टि पड़ते ही वे गर्भिणी हो जायँगी, 

उसी तरह बिल्लेसुर का विश्वास था कि सत्तीदीन की इच्छामात्र से उनकी नौकरी स्थायी हो जायगी, 

चाहे वे डेढ़ इंच की जगह बालिश्त भर छोटे पड़ें।

अपने विश्वास को फलीभूत करने का उपाय बिल्लेसुर रास्ते में सोचते गये।

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